Additional Information | |||
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Title | Patna Diary | Height | |
Author | Nivedita | Width | |
ISBN-13 | 9789390678372 | Binding | HARDCOVER |
ISBN-10 | 9390678372 | Spine Width | |
Publisher | Vani Prakashan | Pages | |
Edition | Availability | In Stock |

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Patna Diary
Author: Nivedita
प्रख्यात कवि और अग्रणी संघर्षशील कार्यकर्ता निवेदिता जी के लेखों का यह संग्रह बीसवीं शताब्दी के अस्सी के दशक के पटना शहर और विस्तार में पूरे देश के जीवन का जीवन्त और मार्मिक दस्तावेज़ है। यह रोज़नामचा भी है और दास्तान भी और अपने स्वभाव में मार्मिक कविता। किसी शहर या कालखण्ड को कितने-कितने कोणों और सन्दर्भो से देखा जाये कि टुकड़ों-टुकड़ों में भी शहर की मुकम्मिल तस्वीर निकल आये-इसकी नायाब मिसाल निवेदिता जी की यह किताब है। अस्सी का वो दशक जन संघर्षों, नये बदलावों और गहरे रोमान से भरा हुआ था। ज़िन्दगी को बेहतर बनाने की ख्वाहिशें, सपने और लड़ाइयाँ अभी भी नौजवानों की ज़िन्दगी का हिस्सा थीं और पटना शहर अनेक परिवर्तनकामी विचारों और आन्दोलनों से उद्वेलित था। निवेदिता जी ने अपने आदर्श नायकों और उनके लेखन, कर्म, संघर्षों को केन्द्र में रखकर उस हीरक समय का एक बहुरंगी मानचित्र प्रस्तुत किया है। उनकी भाषा उस समय के सत्त और सत्य को बहुत तीक्ष्णता से आयत्त करती है। इस पुस्तक का पहला ही लेख महान क्रान्तिकारी कवि आलोक धन्वा की युगान्तरकारी कविता के मोहक वृत्तान्त से शुरू होता है जो पूरे संग्रह के महत्त्व को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। ऐसी पुस्तकों की ज़रूरत हमेशा रहेगी जो विधिवत इतिहास-लेखन या पत्रकारिता न होते हुए भी इतिहास के एक दौर को साहित्य, कला, वैचारिकी और जन-संघर्षों की मार्फत समझने की कोशिश करती हैं और अँधेरों में भी भासमान द्वीपों का अन्वेषण करती हैं। आशा है कि निवेदिता जी की यह पुस्तक अपने अनूठे कलेवर और विन्यास के कारण सहृदय पाठकों का ध्यान एवं आदर अर्जित करेगी। - अरुण कमल