Description
यह कहानी भारत की है । मेरे भारत की । यह एक अत्यंत व्यक्तिगत कहानी है । भारत की साठवीं सालगिरह के जश्न की पुरज़ोर तैयारियां देखते हुए इसकी नींव पड़ी - स्तुट भी अपने छठे दशक पर खड़ी शोभा डे को अचानक लगा , " मेरी जिंदगी की भी वही राह रही है जो हमारे देश की रही ? " अपने पाठकों के साथ येवाक संवाद में ये इस सवाल के साथ ही और भी कई सवालों के जवाब देती हैं , जैसेः क्या भारत वाकई अपनी पीठ ठोंकने का हकदार है ? क्या यह अपनी जनता से किए शुरुआती यादों पर खरा उतरा है ? क्या खुद लेखिका को भारत में विश्वास है ? देश की अनेक छवियों को परखते हुए डे बताती हैं कि भारत से संबंधित हर सच का उलट भी उतना ही सच है : भारत विनम्रों का देश है ; भारत धरती का उत्तराधिकारी है ; भारत स्पष्ट तौर पर दुश्मन देशों से घिरा है ; भारतीय नौकरी के लिए पश्चिमी देशों को भागते हैं और फिर वेहतर जिंदगी की तलाश में वापस दौड़ते हैं । भारतीय अपने पुराने शासकों की नक़ल तो करते हैं , मगर परंपराओं से चिपके हुए हैं । अपने अब तक के लेखन से हटकर शोभा डे मानव समाज के बड़े फ़लक पर भारतीयों और उनके स्थान पर फ़ोकस करती है , और देश की ऐतिहासिक नाकामियों और समान रूप से ऐतिहासिक सफलताओं को इंगित करती हैं । देश और दुनिया में हो रही घटनाओं पर हमारी तीखी प्रतिक्रियाओं को स्वीकार करते हुए डे तर्क देती हैं कि इसके वावजूद हमारे राष्ट्र ने सुपरस्टार का स्टेटस हासिल किया है । हास्य से भरपूर वाक्पटुता से वे पाठकों को यक़ीन दिलाती हैं कि भारत अपनी आभा को खोएगा नहीं ।
यह कहानी भारत की है । मेरे भारत की । यह एक अत्यंत व्यक्तिगत कहानी है । भारत की साठवीं सालगिरह के जश्न की पुरज़ोर तैयारियां देखते हुए इसकी नींव पड़ी - स्तुट भी अपने छठे दशक पर खड़ी शोभा डे को अचानक लगा , " मेरी जिंदगी की भी वही राह रही है जो हमारे देश की रही ? " अपने पाठकों के साथ येवाक संवाद में ये इस सवाल के साथ ही और भी कई सवालों के जवाब देती हैं , जैसेः क्या भारत वाकई अपनी पीठ ठोंकने का हकदार है ? क्या यह अपनी जनता से किए... Read More